शनिवार, 24 नवंबर 2007

चीथड़ों में भी खुद को धनवान समझता है सल्‍फर का रोगी

होम्‍योपैथी एक ऐसी चिकित्‍सा पद्धति है जिसमें निदान के लिए मन को केंद्र में रखकर विचार किया जाता है। इसमें माना जाता है कि रोग पहले मन को ग्रसता है फिर वह तन में प्रकट होता है। इसलिए अगर मन के विकार को समझ कर उसका ईलाज किया जाए तो बीमारी बाद में जड़ जमाकर जीर्ण रूप नहीं ले पाती है। होम्‍योपैथी की हर दवा में कुछ मानसिक लक्षण जरूर लिखे होते हैं। उन लक्षणों पर पकड़ रखने वाला चिकित्‍सक आसानी से अपने मरीज की दिक्‍कतों को समझ कर उसका निदान कर पाता है।
होम्‍योपैथी एक ऐसी चिकित्‍सापद्धति है जिसमें दवाओं को महान कहा जाता है। नहीं जानने वाले के लिए यह हास्‍यास्‍पद हो सकता है, पर चूंकि इस पद्धति में हर दवा के आदमी की तरह विविध लक्षण होते हैं इसलिए एक साथ ज्‍यादा लक्षणों को वहन करने वाली दवाओं को महान पुकारा जाता है। नक्‍स वामिका, थूजा, मर्कसाल,सल्‍फर आदि दर्जनों ऐसी दवाएं हैं जिन्‍हे हनिमैन और बाद के चिकित्‍सकों ने महान दवा कह कर पुकारा है। इस तरह मन और मनुष्‍य से ज्‍यादा जुड़ाव के चलते इन दवाओं का मनुष्‍य की तरह एक मानवीय चेहरा बनता है।
जैसे चर्चित दवा सल्‍फर को लें। इसके कई लक्षण बौद्धिक वर्ग की कई मानसिक गड़बडि़यों की ओर ईशारा करते हैं। दिन-रात बौद्धिक व्‍यायाम में रमें लोगों को यह दवा उनकी कई परेशानियों से निजात दिला सकती है। जैसे कि भुलक्‍कड़ों की यह खास दवा है, ज्‍यादा माथापच्‍ची से स्‍वभावत: पैदा भुलक्‍कड़पन को यह दवा दूर कर सकती है। लगातार पेशेवर सोच-विचार से जब सोच की प्रक्रिया कुंद होने लगे तो सल्‍फर की खुराक आपको राहत दे सकती है।
सल्‍फर के मरीजों की बहुत सी आदतें पारंपरिक भारतीय समाज के प्रतिष्ठित नागरिकों में दिखाई पड़ती हैं। जैसे कि सल्‍फर का रोगी चीथड़ों में रहकर भी खुद को धनवान समझता है। वह अनावश्‍यक व्‍यस्‍त रहता है और बच्‍चों की तरह असंतोष व्‍यक्‍त करता है। श्राप देने वाले अपने ऋषियों को हम यहां याद कर सकते हैं, खासकर दुर्वासा जी को जिनके डर से लक्ष्‍मण ने अपने भाई राम की आज्ञा को भुलाकर उन्‍हें भीतर जाने दिया था और इसके दण्‍ड स्‍वरूप उन्‍हें रामजी ने देशनिकाला ही दे दिया था और शर्मसार लक्ष्‍मण को सरयू में डूबकर आत्‍महत्‍या करनी पड़ी थी। फिर लक्ष्‍मण के शोक में रामजी ने खुद भी सरयू की जलसमाधि ले ली थी।
सल्‍फर का रोगी स्‍वर्थी भी ज्‍यादा हो जाता है और अपने अच्‍छे संबंधों को भी बिगाड़ लेता है। वह चिड़चिड़ा हो जाता है और दूसरों को इज्‍जत नहीं देता । उसमें धार्मिक उन्‍माद भी पाया जाता है। अलबत्‍ता ऐसे आदमी का अपने कारोबार में मन नहीं लगता। वह निरर्थक समय गंवाता है। आलस्‍य भी उसका एक मुख्‍य लक्षण होता है।
सल्‍फर रोगी की नींद बिल्‍ली सी होती है और दिन के ग्‍यारह बजे उसे पेट धंसने सी अनुभूति होती है और उसे लगता है कि उसके पेट में कोई जीवित प्राणी है। ग्‍यारह बजे दिन को अगर कमजोरी और चक्‍कर आए तो भी इस दवा से लाभ होता है। अगर किसी रोगी को सुनाई कुछ ज्‍यादा देने लगे तो उसे सचेत हो जाना चाहिए कि आगे वह अपनी सुनने की शक्ति खो दे सकता है ऐसे रोगी सल्‍फर की खुराकें लेकर अपना बचाव कर सकते हैं।
सल्‍फर का रोगी नींद में बातें भी करता है। हल्‍की आहट से उसकी नींद टूट जाती है। रात दो से सुबह पांच के बीच अगर अनिद्र तंग करे तब भी सल्‍फर को याद करना चाहिए। इसमें एक मजेदार लक्षण है कि इसका रोगी स्‍पष्‍ट सपने देखता है और गीत गाते हुए जागता है। अगर ये लक्षण किसी व्‍यक्ति में हों तो उसे अपने चिकित्‍सक से सल्‍फर के प्रयोग को लेकर सलाह लेना चाहिए।

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