सोमवार, 26 मई 2008

दांत किटकिटाने का मतलब पेट में कीड़ा होना ही नहीं - कुमार मुकुल

हर बार दांत किटकिटाने का मानी पेट में कीड़ा होना नहीं होता। कीड़ों के लिए अनुकूल वातावरण होने पर एक बार उन्हें दवा से मार देने के बाद भी वे बार-बार पनप जो हैं। मीठा और मांस-मछली अधिक खाने से भी पेट में कीड़े पनप जाते हैं। इन आदतों पर नियंत्रण करना होगा।
कीड़े कई तरह के होते हैं, उनके लिए अलग-अलग दवाए¡ लेनी पड़ती हैं। पेट में अगर राउंड वर्म यानी गोलकृमि हों, तो आप होम्योपैथिक दवा सिना का प्रयोग कर सकते हैं। सिना रोगी मोटा और गुलाबी चेहरेवाला होता है। वह चिड़चिड़ा, भुक्खड़ और मीठा पसन्द करनेवाला होता है। अपनी नाक वह खोदता रहता है। ऐसे रोगी सिना 30 की तीन खुराकें रोज ले सकते हैं।
टेप वर्म यानी फीता कृमि के लिए आप क्यूप्रम आक्सीडेटेम निग्रम 1 एक्स की कुछ खुराकें ले सकते हैं। फीता कृमि के लिए आप रोगी को कद्दू के बीजों को छलकर भीतर का हिस्सा खिलाए¡, तो इससे भी कृमि बेहोश हो गुदा मार्ग से बाहर आ सकते हैं। जब कीड़े बाहर आ रहे हों, तब आप उन्हें निकलने दें। बीच से खींच कर उसे तोड़ें नहीं, नहीं तो बाकी बचा हिस्सा जो भीतर रह जाएगा, वह फिर से नया कृमि बन जाएगा।
अगर रोगी को सूत्रा कृमि यानी थे्रड वर्म हो, तो उसे आप चेलोन क्यू की चार-पा¡च बू¡दें एकाèा खुराके देकर कृमि से छुटकारा दलिा सकते हैं। कृमि अगर गुदा प्रवेश में खुजली पैदा करते हों, तो वहा¡ वैजलीन या ओलिव आयल का प्रयोग करने से राहत मिलती है।
यह तो कीड़ों की दवा हुई, पर दा¡त किटकिटाने के अन्य कारण भी हो सकते हैं। ऐसे में नीचे की दवाओं को उनके लक्ष्ज्ञणों का मिलान कर रोगी को
ठीक किया जा सकता है। बेलाडोना 30 का रोगी भी दा¡त किटकिटाता है। ऐसे में अगर रोगी को प्यास नहीं लगती हो और उसे दूèा-मांस नापसन्द हो, भूख कम हो, तो बेला से उसे आराम पहु¡चाया जा सकता है। एंटिम क्रूड के रोगी की जीभ पर सफेदी जमी रहती है और वह आग के पास बैठना पसन्द नहीं करता। इस लक्षण पर आप क्रूड की छह पावन की रोजाना तीन खुराकें देकर उसे दा¡त किटकिटाने से बचा सकते हैं।
आर्स एल्बम का रोगी भी दा¡त बजाता है। पर उसे बेला के विपरीत प्यास अिèाक लगती है। उसे मोटा तकिया लेना पसन्द होता है। वह दूèा भी पसन्द करता है। ऐसे रोगी को आप आर्स 30 की रोज तीन खुराकें देकर उसे स्वस्थ कर सकते हैं। कैनेबिस इंडिका का रोगी अगर दा¡त बजाए, तो देखना होगा कि क्या वह भुलक्कड़ है। कैनेबिस रोगी भी वाचाल होता है और उसे डरावने सपने आते हैं।

गुरुवार, 8 मई 2008

हाय, आप चाय लेंगे - कुमार मुकुल

चाय का आफर मिलने पर अगर कोई चाय पीनेवाला आदमी इनकार करे, तो देखना होगा कि वह वाकई चाय से होनेवाली खामियों के प्रति सचेत हुआ है याफिर उसका फिजिक ही चाय पचा पाने लायक नहीं रह गया है। ऐसे में आप उसे फासफोरस 30 का प्रयोग करने की राय दे सकते हैं।
फासफोरस के रोगी को चाय पचती ही नहीं है। उसका मेटाबोलिज्म (चायपचय) ऐसा बिगड़ा होता है कि वह सामान्य चीजों को भी पचा पाने लायक नहीं रह जाता है। फासफोरस रोगी दुबला-पतला होता है। खास कर उसकी छातियां सिकुड़ी होती हैं। उसके जोड़ कमजोर होते हैं। उसकी चमड़ी पतली और साफ होती है। पर जो लोग वाकई चाय बहुत पीते हों और उनकी आंतें जवाब दे रही हों और परिणामस्वरूप कब्ज भयंकर होती जा रही हो, तो आप हाइड्रेिस्टस को याद कर सकते हैं। आंतें जब मल-निष्कासन में असफल होती जाती हैं, ऐसे में हाइड्रेिस्टस क्यू रामबाण सिद्ध होता है। ऐसा रोगी खुद को कुशाग्रबुिद्ध समझता है। उसे साइनस भी रहती है। पुराने कब्ज की भी हाइड्रेिस्टस अच्छी दवा है और लम्बे समय तक चाय पीना कब्ज को बढ़ावा देता है। ऐसे में इसकी भूमिका स्वयंसिद्ध होती है। ऐसे में सामान्य दवाएं, जो पेट साफ करने में असफल सिद्ध हों तो आप होम्योपैथी की यह दवा दस बूंद सुबह-शाम ले सकते हैं। चाय पीने से कैंसर तक होने की संभावना भी रहती है। ऐसे में हाइड्रेिस्टस कैंसर से आपका बचाव करता है।
चाय पीने से अगर पेट में ऐंठन होती हो और कोई भी खाद्य पदार्थ अनुकूल पड़ता हो, तो आप चाय को छोड़ फेरमफास 12 एक्स का प्रयोग कर सकते हैं। चाय की गड़बिड़यों को एक हद तक चायना भी एक हद तक संभालती है। चाय से जो स्नायविक गड़बिड़यां होती हैं, कमजोरी और पेट में गैस भी, ऐसे में चायना काफी काम की सिद्ध होती है। चाय पीने से अनिद्रा की शिकायत भी बढ़ती जाती है। इस सबको आप चायना 30 की कुछ खुराकें लेकर ठीक कर सकते हैं।
यू¡ चाय से पैदा होनेवाली न्यूरोलाजिकल गड़बिड़यों को थूजा भी दूर कर देता है। अिèाक चाय पीने से अगर आपका खून गन्दा हो गया हो और चेहरे पर लाल फुंसियां निकल रही हों, तो इस गन्दगी को उभारने के लिए आप आरम्भ में हीपर सल्फ की भी कुछ खुराकें ले लें, तो बेहतर होगा।
यूं जिनको चाय से अभी कोई हानि न दिखती हो, पर उससे होनेवाले खतरों के प्रति वे सचेत हों और चाय छोड़ना चाहते हों, तो अपने लक्ष्णों का मिलान कर वे हीपर सल्फ, हाइड्रेिस्टस या कैल्के सल्फ की कुछ खुराकें ले सकते हैं।
चाय अक्सर अल्युमीनियम के भगोने में खदका कर बनाई जाती है। चाय के अलावा यह अल्युमीनियम भी घुल कर पेट की प्रणाली को बार्बाद करने में कम भूमिका नहीं निभाता है। चाय के विकल्प के रूप में कुछ दिन आप नींबू की चाय पी कर काम चला सकते हैं। दिल्ली में आइआइटी के छात्रों को उसी रंग का जो पेय उपलब्‍ध कराया जाता है, उसमें सौंफ आदि पचासों जड़ी-बूटियां मिली होती हैं। अखंड ज्योति द्वारा प्रचारित प्रज्ञा पेय भी चाय का विकल्प हो सकता है।

शुक्रवार, 2 मई 2008

पगला कहीं का - कुमार मुकुल

जब कोई प्यार से आपके गाल थपथपाता हुआ कहता है, पगला कहीं का, तो आप उसे स्नेह की अभिव्यक्ति मानते हैं। पर आपकी किसी क्रिया पर आपका संगी अचानक चिल्ला कर कहे कि पगला गए हो क्या, तो आपको विचार करना चाहिए कि कहीं आपका नर्वस सिस्टम उत्तेजित तो नहीं हो रहा।
मस्तिष्क और उसके स्नायु मंडल में जब किसी कारण उत्तेजना पैदा होती है, तब आदमी अपने होश खाने लगता है। पहले तो वह प्रलाप की अवस्था में जाता है, फिर कभी ह¡सना, अकारण रोना, दा¡त काटते दौड़ना आदि क्रिया करने लगता है। ऐसे में उसे लक्षणों के हिसाब से अगर होमियोपैथी दवा दी जाए, तो उसे का¡के और आगरा जाने से बचाया जा सकता है। पागलपन की ऐसी अवस्था में बेलाडोना हायोसायमस और स्ट्रैमोनियम को लक्षणों के हिसाब से दिया जाना चाहिए। डॉण् नैश इन तीनों दवाओं को पागलपन की मुख्य प्राथमिक दवा मानते हैं। किसी भी बीमारी में अप्रत्याशित तेजी के लिए बेलाडोना को याद किया जाता है। अगर रोगी हर काम बहुत तेजी से करे, अचानक अपना गला दबाने की कोशिश करे, या सामनेवाले को अपनी हत्या करने को कहे, खाना खाने की जगह प्लेट-चम्मच चबाने की कोशिश करे, तो ऐसे में बेलाडोना 30 की कुछ खुराकें उसे नियंत्रित कर सकती हैं। रोगी की आ¡खें लाल हों और वह एक जगह नजर गड़ा कर देखता हो, अपने कपड़े फाड़ डालता हो और किसी के द्वारा माने जाने के काल्पनिक भय से इधर-उधर भागता हो, तो ऐसे में बेलाडोना ही काम करता है।
पागलपन का रोगी अगर उतना हिंसक न हो, बल्कि उनके मनोविकार ज्यादा प्रकट हो रहे हों, जैसे अकारण ह¡सना, गाना, बेहूदी बातें करना, उड़ने का अनुभव करना आदि, तो ऐसे में हायोसायमस 30 की कुछ खुराकें उसे नियंत्रिात कर सकती हैं। हायोसायमस के मूलार्क के कुछ चम्मच पी लेने से स्वस्थ आदमी में भी ये लक्षण उभर सकते हैं।
पर विकट पागलपन की दवा है स्ट्रोमोनियम। इसमें रोगी की बकवास की प्रवृत्ति ऊपर की दोनों दवा से ज्यादा होती है। स्ट्रेमो रोगी अ¡धेरे से डरता है जबकि बेला का रोगी अ¡धेरा पसन्द करता है। स्ट्रेमो रोगी बेला के विपरीत अकेला रहना नहीं चाहता है।
अगर रोगी आत्महत्या के इरादे से भाग जाने की फिराक में रहता हो और इसमें बाधक बननेवाले की हत्याकरने की बात करता हो, तो ऐसे में मेलिलोटस 6 की कुछ खुराकें उसे शान्त करती है। मेलि रोगी को लगता है कि उसके पेट में कुछ गड़बड़ है। उसमें भूत बैठा है। पर रोगी पागल हो जाने की आशंका खुद व्यक्त करता हो या उसका समय जल्दी नहीं बीतता प्रतीत होता हो या अपना रास्ता उसे अनावश्यक लम्बा लगता हो, तो ऐसे में भुलक्कड़ रोगी को कैनेबिस इंडिका का मूलार्क या 6 पावर की दवा लेनी चाहिए। अगर किसी को लगे कि वह बहुत धनी हो और अपने नए कपड़े भी वह जोश में फाड़ डाले या पुराने कपड़े में खुद को राजा महसूस करे, तो उसे सल्फर-1 एम की एक खुराक देकर देखें।